– लब्बैक या हुसैन की सदाओं के साथ होता रहा मातम
फ़तेहपुर। थाना थरियांव क्षेत्र के अंतर्गत चक कोर्रा सादात में कई वर्षों से होता आ रहा इमाम ज़ैनुल आब्दीन उर्फ सज्जाद (अ०स०) की याद में ये प्रोग्राम हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी बुधवार की रात बड़े अकीदत के साथ मनाया गया। इस्लाम धर्म के रसूल अल्लाह के नवासे इमाम हुसैन (अ०स०) के पुत्र ज़ैनुल आब्दीन (अ०स०) का ग़म इस साल भी शब्बेदारी करते हुए और मातम तथा नौहा ख्वानी करते हुए सच्चे दिल से उनको मानने वालों द्वारा मनाया गया।
बताते चलें कि आज से चौदह सौ साल पहले करबला में उस समय का बना हुआ खलीफा यजीद चाहता था कि इमाम हुसैन जैसी पाक शख्शियत उसके साथ हो जाएं इसके लिए उसने तरह – तरह के हथकंडे अपनाए, पहले दबाओ बनाया जब इमाम हुसैन ने उसकी कोई भी नज़ाएज़ बात न मानी तो ज़ुल्म इतना बढ़ा दिया कि सात मोहर्रम से हुसैन के पूरे परिवार सहित वहां लश्कर में उपस्थित सभी पर पानी बंद कर दिया और नहर पर पहरा लगा दिया और आदेश जारी किया कि इमाम हुसैन के खेमों में एक बूंद भी पानी न जाने पाए। यजीद सोच रहा था कि हुसैन पानी की वजह से टूट जाएंगे और मेरी शर्तें मान लेंगे लेकिन वो भूल गया था कि जिसकी ठोकर में पानी हो उसे पानी कैसे तोड़ सकता है। जब इमाम हुसैन ने तीन दिन की भूख प्यास के बाद भी यजीद की शर्तें नहीं मानी तो यजीदी फौज ने इमाम हुसैन के खेमों पर हमले प्रारंभ कर दिए और 10 अक्टूबर 680 ई० को सुबह नमाज़ के समय से ही जंग छिड़ गई इसे जंग कहना तो ठीक न होगा क्योंकि एक ओर लाखों की फ़ौज थी और दूसरी तरफ यानी इमाम हुसैन की तरफ चंद परिवार और कुछ मर्द शामिल थे। हुसैन के साथ केवल 107 मर्द थे जिसमें छह महीने से ले कर 13 साल के बच्चे भी शामिल थे फिर भी इमाम हुसैन ने करबला में अपने नाना का वादा वफ़ा करते हुए अल्लाह की राह में अपना सर कटवा लिया और इस्लाम को ज़िंदा करने के साथ ही इस्लाम का बोलबाला कर दिया। ये पहली ऐसी जंग थी कि जंग जीतने वाला यजीद और यजीदी लश्कर जीतकर भी हार गया और ईमान की राह पर इस्लाम बचाकर सर कटाने वाले हमेशा के लिए कयामत तक ज़िंदा हो गए। करबला की शहादत पर कोर्रा सादात में इमाम हुसैन के साहबजादे जो जंग के समय बीमार थे और लुटा काफिले के साथ यजिदियों ने हुसैनी लश्कर की औरतों और बच्चियों के साथ बीमार आबिद को बेड़ियों में जकड़कर यजीद के पास ले गए उसके बाद उनको मदीना भेजा गए।
इस शब्बेदारी में बीमार ए आबिद के साथ ही दीगर कर्बला के शहीदों का ताबूत भी सभी को ज़ियारत कराई गयी। इस दौरान मौलाना मनाज़िर अख़्तर साहब ने तक़रीर की। उन्होंने अपनी तक़रीर में वाक़ेयाते कर्बला को बयान किया और कर्बला में यज़ीद द्वारा अहलेबैत पर ढाये गए ज़ुल्म पर रौशनी डाली। अंत में अपने गांव व मुल्क में आपसी एकता, अमन – चैन एवं तरक्की की दुआ मांगी गई। मजलिस के बाद बाँदा से अंजुमन अब्बासिया, फ़तेहपुर से अंजुमन जाफ़रिया, करारी कौशाम्बी से अंजुमन सदक़ा ए ज़हरा और कोर्रा सादात की अंजुमन हसनुल हुसैनी और अहले सुन्नत के मशहूर नौहा ख़्वान उस्मान अली बड़ा गांव कौशाम्बी ने सीना ज़नी कर अपने – अपने कलाम पेश कर रसूल अल्लाह के नवासे को पुरसा पेश कर खिराजे अक़ीदत पेश की। तमाम बाहर से आये हुए अक़ीदतमंदो ने रात भर जाग कर पढ़ने वालों का हौसला बढ़ाया। इस कार्यक्रम के समापन तक कमेटी के सदस्यों काज़िम हुसैन, फ़रहान, सैफ़ ख़ान, हसन अब्बास, हुसैन ख़ान, ताहा, अली अब्बास व अरीब ने आने वाले मेहमानो की ख़िदमत में कोई कसर नहीं छोड़ी। रात भर सभी के लिए पानी और कॉफी की सबीले व लंगर वगैरह होता रहा।
इस दौरान साइबर जर्नलिस्ट एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार शहंशाह आब्दी ने भी बढ़चढकर हिस्सा लिया और ग़मे हुसैन व ग़मे इमाम ज़ैनुल आब्दीन के साक्षी बने। इस मौके पर ज़िला प्रधान संघ के अध्यक्ष नदीम उद्दीन पप्पू, कोर्रा सादात के प्रधान तब्बू सय्यद, बहेरा सादात के पूर्व प्रधान ताज आब्दी, बहरामपुर के पूर्व प्रधान मुनव्वर ख़ान ने भी शिरकत किया। इस कार्यक्रम में थाना थरियांव की पुलिस भी उपस्थित रही, पूर्णरूप से कार्यक्रम आपसी एकता, सदभाव व श्रद्धा भावना से संपन्न हुआ, अंत में आये सभी मेहमानों एवं पुलिस प्रशासन का गांव के बड़े – बुज़ुर्गो ने तहे दिल से शुक्रिया अदा किया।
