शीबू खान
– शासन का नया आदेश! सभी विभागों को पत्र – आधार जन्म का प्रमाण नहीं, जनता में रोष
– विपक्ष का वार— ‘जनता को उलझाओ, सवालों से बचो’ की राजनीति कर रही है सरकार
– ग्रामीण इलाकों में सबसे ज़्यादा परेशानी, बहुतों के पास आधार ही एकमात्र पहचान पत्र
फतेहपुर। उत्तर प्रदेश में एक ओर जहाँ आधार सत्यापन और दस्तावेज़ों की सख्ती को लेकर लोग पहले से ही परेशान हैं, वहीं अब सरकार द्वारा आधार कार्ड को जन्म प्रमाण पत्र नहीं मानने का फैसला नई बहस और असंतोष को जन्म दे रहा है। सरकार के निर्देशन पर नियोजन विभाग ने इस संबंध में सभी विभागों को पत्र भेजकर स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि आधार कार्ड को जन्म तिथि का वैध प्रमाण न माना जाए। हालांकि ये निर्णय महज उत्तर प्रदेश सरकार ने ही नहीं लिया है बल्कि कई अन्य राज्यों ने भी लिया है। इस बदलाव से बड़ी बहस छिड़ी हुई हैं। बताते चलें कि जब 2009 में आधार बनाने का कॉन्सेप्ट यूपीए सरकार ने शुरू किया तो उसका मकसद था कि जिस तरह विदेशों में कई सशक्त देशों के नागरिकों के पास यूनिक आईडी कार्ड होता है उसी तरह से भारतवासियों का अपना यूनिक आईडी कार्ड होगा जिसमें व्यक्ति की हर एक जानकारी उसकी बायोमैट्रिक्स के साथ जोड़ा जाएगा। तब से डिजिटल इंडिया के रूप में आधार कार्ड एक मजबूत साधन बनकर लोगों के लिए बनकर उभरा था। लेकिन बीते कई सालों से आधार को निराधार बनाने के साथ ही निष्प्रयोज्य दस्तावेज के लिए लगातार घोषणाएं होती रही हैं। सबसे पहले आधार को नागरिकता का प्रमाण नहीं बताया गया उसके बाद एनआरसी की घोषणा के समय भी दिक्कत की गई थी और हाल ही में बिहार विधानसभा चुनाव के पहले वहां हुए एसआईआर में निर्वाचन आयोग ने निवास या जन्मतिथि का प्रमाण मानने से इंकार कर दिया था जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के दखल से आधार कार्ड को वैकल्पिक रूप से शामिल किया गया था। और अब आधार कार्ड में दर्ज उम्र को जन्म का प्रमाण पत्र मानने से इंकार किया गया है जिससे जनता में आक्रोश साफ नजर आ रहा है।
इस निर्णय के बाद आम जनता, युवा, अभिभावक, अधिवक्ता, पत्रकार और स्थानीय नेताओं में नाराज़गी और बेचैनी बढ़ गई है। इस विषय पर बात करने में लोगों ने खुलकर अपनी पीड़ा, अविश्वास और गुस्से को सामने रखा। जनता से संवाद के दौरान बड़ी संख्या में लोग बोले कि आधार कार्ड को वर्षों से पहचान का सबसे बड़ा दस्तावेज बताया जाता रहा है— बैंक, स्कूल, राशन, पेंशन, गैस, इलाज, वोटर आईडी लिंकिंग सहित हर जगह इसकी ज़रूरत पड़ती है। इस पर एक युवक ने गुस्से में कहा कि स्कूल में एडमिशन के समय आधार देना पड़ता है, नौकरी में आधार देना पड़ता है और अब अचानक कहा जा रहा है कि आधार जन्म प्रमाण नहीं है! सरकार खुद ही नियम बदलने में लगी है। साथ ही एक महिला अभिभावक बोली कि हम बच्चों का आधार बनवाने के लिए लाइनों में खड़े रहे। अब स्कूल कह रहे हैं कि जन्म प्रमाण अलग से लाओ। जनता को ही गलत साबित किया जा रहा है। वहीं एक बुजुर्ग ने कहा कि आधार न मानना तो ठीक लेकिन सरकार बताए कि इतने सालों में जो डेटा जुटाया गया है, उसकी विश्वसनीयता क्या है? सरकार द्वारा आधार को जन्म प्रमाण पत्र न मानने की घोषणा ने जनता के अविश्वास को और गहरा कर दिया है।
जनसंवाद में साफ दिखा कि नागरिकों को लगता है कि सरकार उन्हें लगातार दस्तावेज़ों, प्रक्रियाओं और सत्यापन के चक्कर में उलझाकर असली मुद्दों से भटका रही है। लोगों ने सवाल उठाया— अगर आधार ही मान्य नहीं, तो सरकार ने पिछले 10 साल जनता को किस आधार पर चलाया?
