फतेहपुर में पुलिस-एसटीएफ की कार्रवाई पर भारी पड़ता माफिया सिंडिकेट
– पुलिस–एसटीएफ की कार्रवाई के बावजूद नहीं टूट रहा माफिया नेटवर्क
– अवैध खनन का ‘सुपर सिंडिकेट’, प्यादे पकड़ में, सरगना सुरक्षित
– सिस्टम के संरक्षण में फल-फूल रहा खनन माफियाओं का तंत्र
फतेहपुर। जनपद में इन दिनों पुलिस और एसटीएफ की टीमें लोकेटरों पर लगातार छापेमारी कर अवैध खनन और ओवरलोडिंग से जुड़े नेटवर्क को तोड़ने का दावा कर रही हैं। कई लोकेटर पकड़े भी गए हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि इसके बावजूद अवैध खनन और ओवरलोडिंग का कारोबार बदस्तूर जारी है। यह स्थिति प्रशासनिक दावों और वास्तविक परिणामों के बीच गहरे अंतर को उजागर करती है।
सूत्रों के मुताबिक, लोकेटर गैंग खनन माफियाओं को पुलिस, एसटीएफ और प्रशासनिक गतिविधियों की पल-पल की सूचना देता है। हालिया कार्रवाई में कुछ लोकेटरों की गिरफ्तारी को बड़ी सफलता बताया गया, लेकिन सवाल यह उठता है कि यदि नेटवर्क पर वास्तविक चोट हुई होती तो ओवरलोड ट्रकों और अवैध खनन की रफ्तार में कमी क्यों नहीं आई? जनपद में अवैध खनन अब किसी एक गिरोह या कुछ लोगों तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह एक संगठित सिंडिकेट का रूप ले चुका है। जानकारों का मानना है कि इतना बड़ा और निरंतर चलने वाला कारोबार बिना प्रशासनिक संरक्षण और राजनीतिक छत्रछाया के संभव ही नहीं है। यही कारण है कि कार्रवाई अक्सर छोटे स्तर के लोगों तक सिमट कर रह जाती है, जबकि असली सूत्रधार पर्दे के पीछे सुरक्षित रहते हैं। यदि इस पूरे प्रकरण की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कराई जाए, तो यकीनन कई अधिकारी और सत्ता से जुड़े सफेदपोश भी जांच के दायरे में आ सकते हैं। अवैध खनन, ओवरलोडिंग, परिवहन और लोकेटर नेटवर्क यह सब एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है, जिसे बिना ऊपरी संरक्षण के संचालित करना लगभग असंभव है। कार्रवाइयों में जिन लोगों की गिरफ्तारी होती है, वे अधिकतर ढाबा संचालक, चालक या लोकेटर जैसे छोटे चेहरे होते हैं। इन्हें सिंडिकेट के ‘प्यादे’ माना जाता है, जबकि असली ‘बादशाह’ आज भी बेखौफ होकर पूरे तंत्र को नियंत्रित कर रहे हैं। यही वजह है कि कुछ दिनों की कार्रवाई के बाद हालात फिर पहले जैसे हो जाते हैं।
अवैध खनन और ओवरलोडिंग का सीधा असर सड़कों, पुलों, पर्यावरण और आम जनजीवन पर पड़ रहा है। सड़कें जर्जर हो रही हैं, दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ रहा है और नदियों के प्राकृतिक स्वरूप से खिलवाड़ हो रहा है। नुकसान जनता झेल रही है, जबकि माफिया और उनके संरक्षक मालामाल हो रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वर्तमान कार्रवाई सिर्फ दिखावे तक सीमित है, या फिर वास्तव में पूरे सिंडिकेट को ध्वस्त करने की इच्छाशक्ति मौजूद है? जब तक कार्रवाई की आंच बड़े अधिकारियों और प्रभावशाली चेहरों तक नहीं पहुंचेगी, तब तक फतेहपुर में अवैध खनन और ओवरलोडिंग पर पूरी तरह अंकुश लगना मुश्किल दिखाई देता है।
फतेहपुर जनपद का यह प्रकरण अब केवल कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं, बल्कि सिस्टम की साख और ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति की असली परीक्षा बन चुका है। देखना होगा कि आगे – आगे होता है क्या?
