शीबू खान
– लोकेटर पकड़े गए, लेकिन खनन माफिया का नेटवर्क जस का तस
– अवैध खनन का अदृश्य साम्राज्य, सिस्टम की नाक के नीचे फल-फूल रहा माफिया सिंडिकेट
– जनता का सवाल— कब होगी बड़े मगरमच्छों पर कार्रवाई?
फतेहपुर। लोकेटर गैंग पर पुलिस और एसटीएफ की छापेमारी के कुछ ही दिनों बाद फतेहपुर में अवैध खनन और ओवरलोडिंग एक बार फिर पूरी रफ्तार में लौट आई है। कार्रवाई के बाद भले ही प्रशासन ने नेटवर्क तोड़ने का दावा किया हो, लेकिन ज़मीनी हालात बताते हैं कि माफिया सिंडिकेट ने महज रणनीति बदली है, कारोबार बंद नहीं किया।
सूत्रों के अनुसार, पहले जहां लोकेटर मोबाइल कॉल और मैसेज के जरिए सूचना देते थे, अब उसी काम के लिए व्हाट्सएप ग्रुप, कोड वर्ड और बच्चों तक को “स्पॉटर” के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। पुलिस मूवमेंट की जानकारी अब पहले से भी ज्यादा तेज़ी से खनन स्थलों तक पहुंच रही है। दिन में कार्रवाई के डर से खनन धीमा रहता है, लेकिन रात होते ही नदियों और घाटों पर पोकलैंड और ओवरलोड ट्रकों की कतारें लग जाती हैं। कई जगहों पर खनन सुबह तक जारी रहता है, जिससे साफ है कि माफिया को कार्रवाई का डर नहीं है। ग्रामीणों का आरोप है कि कुछ थाना क्षेत्रों में बिना स्थानीय पुलिस की जानकारी के इतना बड़ा अवैध परिवहन संभव ही नहीं है। कई बार शिकायतों के बावजूद मौके पर न तो पुलिस पहुंचती है और न ही खनन रुकता है। अवैध खनन का असर अब साफ दिखाई देने लगा है। नदियों का जलस्तर असंतुलित हो रहा है, किनारे कट रहे हैं और भारी वाहनों से ग्रामीण सड़कें जर्जर हो चुकी हैं। दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ गया है, लेकिन जिम्मेदार विभाग मौन हैं। फॉलोअप जांच में यह भी सामने आया है कि अब तक किसी बड़े खनन कारोबारी या फाइनेंसर पर हाथ नहीं डाला गया। गिरफ्तार लोग वही छोटे चेहरे हैं— चालक, क्लीनर या लोकेटर। इससे यह सवाल और गहराता जा रहा है कि क्या जांच की दिशा जानबूझकर सीमित रखी जा रही है?
लगातार सामने आ रही इस स्थिति से आम लोगों में आक्रोश है। लोगों का कहना है कि जब तक खनन माफिया के “सफेदपोश संरक्षकों” पर कार्रवाई नहीं होगी, तब तक अवैध खनन यूं ही चलता रहेगा।
इनसेट बॉक्स
अब निर्णायक कार्रवाई की मांग
फतेहपुर का अवैध खनन मामला अब सिर्फ कानून व्यवस्था का नहीं, बल्कि प्रशासनिक इच्छाशक्ति का पैमाना बन चुका है। जनता और सामाजिक संगठनों की मांग है कि केवल लोकेटर नहीं, बल्कि पूरे माफिया सिंडिकेट, उनके वित्तपोषकों और संरक्षकों पर सीधी कार्रवाई की जाए, तभी “जीरो टॉलरेंस” नीति पर भरोसा कायम हो सकेगा।
